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लाल सलाम—सलाम

nai baat
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मित्रों हाल के दिनों में कुछ व्यक्तिगत कारणों से नई पोस्ट नहीं लिख सका। अब कोशिश होगी कि आपके साथ शब्दों के जरिए निरंतर बना रहूं। आज जब यह पोस्ट लिख रहा हूं तो नई दिल्ली में सिविल सोसाइटी से जुड़े लोग मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में लोकपाल विधेयक पर जनमत सर्वेक्षण करवा रहे हैं, हो सकता है कि ऐसे सर्वे उन नेताओं को उनकी भाषा में जवाब हो जाय जो अब तक यह चुनौती देते नहीं अघा रहे हैं कि यदि अन्ना और उनके साथियों में दम हो तो वह चुनाव लड़कर क्यों नहीं देख लेते। मुझे यह पंक्तियां लिखते वक्त अनिल कपूर अभिनीत नायक फिल्म की याद भी आ रही है। उसमें एक दृश्य है जब अमरीश पुरी मुख्यमंत्री के रूप में इंटरव्यू दे रहे होते हैं और सवालकर्ता पत्रकार के रूप में अनिल से कहते हैं कि –सरकार चलाना बच्चों का खेल नहीं है बच्चू। एक दिन चीफ मिनिस्टर बनकर देख लो, पता चल जाएगा। खैर, वह तो फिल्म की बात थी। हकीकत में ऐसा होगा या नहीं, यह सिविल सोसाइटी को मिलने वाला जनसमर्थन तय करेगा। कपिल सिब्बल जैसे लोग यदि अगले चुनाव में परास्त हो जाते हैं तो मानना पड़ेगा कि आम हिंदुस्तानी कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद होता देखना चाहता है। उसके जेहन को यह बात मथती है कि 1.21 अरब लोगों का देश आज भी सिर्फ और सिर्फ समस्याओं से जूझ रहा है। गरीबी, आतंकवाद, बेरोजगारी सबके मूल में भ्रष्टाचार है लेकिन हमारी प्यारी-प्यारी सरकारों को यह दिखाई नहीं देता। सारे के सारे दल इस मामले में एक ही थैली के चट्टे-बट्टे दिखाई देते हैं। वह यह मानकर चलते हैं कि पब्लिक भुलक्कड़ है और पढ़े-लिखे लोग अपने जीवन में यह चौपाई आत्मसात कर लिए हैं कि कोउ नृप होय हमें का हानि। यदि नेताओं की यह सोच सही है तो परिर्वतन भूल जाइय़े। हां, ऐसा नहीं है तो तैयार रहिए वह दृश्य देखने के लिए जो आज पड़ोसी चीनी भाई देख रहे हैं। वहां भ्रष्टाचार के आरोपी दो उपमहापौर गुजरे मंगलवार को ही फांसी पर लटका दिए गए। मैं चाहता हूं कि हिंदुस्तानियों को भी जल्द ही ऐसे दिन देखना नसीब हो। अभी तक का अनुभव तो अच्छा नहीं रहा है। यहां अनगिनत सुखराम-कलमाड़ी, बंगारू हैं, किसी को फांसी पर चढ़े देखा है आपने। चीन के बारे में एक औऱ बात। वहां कितने अऱबपति हैं, यदि जानकारी हो तो मुझे बताइएगा।

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